Vedic Sadhana

“स्वामी श्री निखिलेश्वरानन्दजी साधना प्रयोग” को सम्पन्न कर हम सभी सन्यासी शिष्यों ने इस पूर्णता को प्राप्ती की विशेष रूप से स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के लिए ही यह प्रयोग विधि बनाई गई थी, जो प्रयोग विधि महा तेजस्वी योगीराज महारूपा जी से प्राप्त हुई थी, और जिसके माध्यम से साधनाओं में सम्पूर्ण सिद्धियां प्राप्त करने में हम लोगों ने सफलता पाई है।

 विनियोग

ऋष्यादि न्यास

पडंग न्यासकर-न्यासअंग न्यास
ॐ ऐं श्रीं क्लींअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
प्राणात्मनतर्जनीभ्यां स्वाहाशिरसे स्वाहा
“निं”मध्यमाभ्यां वषट्शिखायै वषट्
सर्व सिद्धि प्रदायअनामिकाभ्यां हुंकवचाय हूं
निखिलेश्वरानंदायकनिष्ठाकाभ्यां वौषट्नेत्र त्रयाय वौषट्
नमःकर-तल-कर
पृष्ठाभ्यां फट्
अस्त्राय फट्

इसके बाद मानस पूजन करें

मंत्र

प्रति दिन निखिलेश्वारानन्द स्तवन का पाठ करना चाहिए, अथवा सोमवार और गुरुवार को तो निश्चय ही इसका पाठ कर बाद में ही अन्न जल ग्रहण करना चाहिए।

देह सूक्ष्म प्रयोग करें

 उपरोक्त स्तवन पाठ के बाद निम्न प्रकार से देह सूक्ष्म प्रयोग साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं अमुक गोत्र, अमुक नाम का शिष्य अपने देह की रक्षा करता हुआ, अपने स्थूल देह को सूक्ष्म देह में परिवर्तित कर समस्त ब्रह्माण्ड में विचरण करने की सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए परम पूज्य गुरुदेव को और उनकी समस्त शक्तियों उनके समस्त ज्ञान, और उनकी समस्त सिद्धियों के साथ मैं उन्हें अपने शरीर में समाहित करता हूँ।

 इस प्रकार साधक इस स्तोत्र कवच का पाठ कर दोनों हाथ जोड़ कर गुरुदेव के चित्र या उनकी पादुका के सामने भक्तिभाव के साथ प्रणाम करे

करुणामय ! दीनेश ! तवाहं शरणं गतः ।

त्वत्-पदाभ्योरुहच्छायां देहि भूर्ध्नि यशोधन ।।

 इस प्रकार साधना और प्रयोग सम्पन्न करने के बाद जब गुरु प्रसन्न होते है, तो उनके चित्र से या उसकी पादुका से (यदि वे साक्षात उपस्थित हो तो उनके मुंह से) शब्द उच्चरित होते हैं उत्तिष्ठ वत्स । मुक्तोऽसि ब्रह्म-ज्ञान-परो भव । जितेन्द्रियः सत्य-वादी बलारोग्यं सदास्तु ते ।।

यदि पूज्य गुरुदेव सशरीर सामने उपस्थित न हो तो साधक ऐसा अनुभव करे, कि पूज्य गुरुदेव उसे ऐसा ही आशीर्वाद दे रहे है।

अर्थात् हे पुत्र, हे शिष्य, हे आत्मीय, उठो, तुम मुक्त हो, मेरे शिष्य रहते हुए ब्रह्म ज्ञान का अध्ययन करो, तुम इन्द्रियों पर अपने विकारों और बुद्धि पर नियंत्रण करते हुए सत्यवादी बने रहो, और चुनौतियों का दृढता के साथ सामना करो। बल और आरोग्य हमेशा तुम्हारे साथ रहे और तुम पूर्णता प्राप्त करो ।

इसके बाद साधक खडे हो कर पूर्ण भक्ति भाव से गुरुदेव की आरती सम्पन्न करे और गुरुदेव को समर्पित किया हुआ प्रसाद स्वयं तथा अपने परिवार को दे, तथा गुरुदेव का आज्ञाकारी हो कर देवता के समान भूमण्डल पर विचरण करता हुआ, उनके आदर्शो का पालन करे ।

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