गुरु गीता अत्यन्त गोपनीय रही है, पर उच्चकोटि के साधकों के लिए यह महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ कही गई है। जो साधक या शिष्य नित्य एक बार इसका पाठ करते है, उसे प्रत्येक साधना में सिद्धि प्राप्त होती है, और साथ ही साथ इसकी वजह से गुरु की आत्मा से शिष्य की आत्मा का पूर्ण तादात्य स्थापित हो जाता है, फलस्वरूप गुरु की साधना का अंश गुरु की तपस्या का अंश और गुरु के ज्ञान का अंश स्वतः साधक को प्राप्त होने लगता है और वह शीघ्र ही साधनाओं में सिद्धि प्राप्त करता हुआ, उच्चकोटि का साधक बन जाता है।
सिद्धाश्रम के समस्त साधकों के लिए प्रातः काल उठ कर गुरु गीता का पाठ करना अनिवार्य हैं।
जो साधक भक्ति-भाव से गुरु-गीता को पढ़ता है अथवा सुनता है या लिखता है, वह समस्त भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है। जब सात्विक और शुद्ध गुण शिष्य के अन्दर उतर आते हैं, तब इस गुरु-गीता का ज्ञान स्वाभाविक रूप से उसे चैतन्यता प्रदान करता ही है, अतः नित्य प्रति गुरु-गीता का पठन, मनन तथा चिन्तन शिष्य के लिए एक आवश्यक क्रिया है ।। गुरुगीता – २१८ ।।
जो साधक गुरु-गीता को लिखकर गुरु-पूजन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसके प्रभाव से साधक के हृदय में गुरु-भक्ति स्वतः ही उत्पन्न होने लगती है
।। गुरुगीता – २१९ ।।
संसार में निवास करने वाले सभी प्राणी गुरु-गीता के पाठ से अपनी सभी मनोकामनाओं को प्राप्त करते हैं, यह निश्चित है, अतः शिष्य को चाहिए, कि वह प्रतिदिन इस पावन गुरु-गीता का पाठ करे ।।
गुरुगीता – २२०।।