Vedic Sadhana

महाविद्या साधनाओं में गुरु का महत्व

यह एक ऐसी साधना है, जिसकी तुलना अन्य उच्च कोटि की साधनाओं से भी नहीं की जा सकती। इस साधना के माध्यम से समस्त दसों महाविद्याओं को सिद्ध किया जा सकता हैं और जो इस साधना को सम्पन्न कर लेता है, उसके लिए जीवन में अन्य कोई साधना बाकी नहीं रहती ।

समस्त साधनाओं का प्रारम्भ और समापन गुरु से हो होता है, तंत्र में गुरु को समस्त महाविद्या साधनाओं एवं अन्य देव-साधनाओं में सर्वोच्यता प्रदान की है, उन्हें भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना गया है।

भगवान शिव ने स्वयं कहा है हे देवी, गुरु ही एक मात्र शिव कहे गये है और वह मैं ही हूं, इसमें कोई सन्देह नहीं। तुम जगत जननी अम्बिका स्वरूप हो और तुम भी गुरु मंत्र और दुर्गा हौ, अतः मंत्र, गुरु और देवता में कोई भेद नहीं होता, इन तीनों की एकता भावना बुद्धि द्वारा करते रहने से ही मंत्र गुरु और देवता में कोई भेद नहीं करता, उस पर जगदम्बा प्रसन्न हो कर सब कुछ दे देती है।

“पादुका तंत्र” में गुरु को शिव और शक्ति का समन्वय स्वरुप माना है और महर्षि ने गुरु का ध्यान इस प्रकार बताया है –

“निज-शिरसि श्वेत-वर्ण सहस्त्र दल-कमलकर्ण कार्नात- चन्द्रमण्डलोपरि स्वगुरु शुक्ल-वर्ण शुक्लालंकार भूषित ज्ञानानन्द- मुदित मानसं सच्चिदानन्द-विग्रह चतुर्भुजं ज्ञान-मुद्रा पुस्तक-वराभय- कर त्रि-नयनं प्रसन्न वदनेक्षणं सर्व देव-देवं वामांग वामहस्त-धृत-लीला कमलया रक्त-वसना भरणाया स्व-प्रियया दक्ष भुजेनालिंगं परम-शिव- स्वरुपं शान्तं सुप्रसन्न ध्यात्वा तच्चरण-कमल-युगन-विगलदमृत-धारया स्वात्मानंप्लुतं विभाव्य मानसोपचारैराराध्य” ।

 गुरु पूजन प्रारम्भ करते समय सबसे पहले श्री गुरु मण्डलार्चन करना चाहिए –

उपरोक्त चार पंक्तियां सामान्य पक्तियां नहीं है, अपितु इसके प्रत्येक अक्षर का अपने आप में महत्व है जो कि तांत्रिक षोडशी क्रम में स्पष्ट रूप से बताया गया है ।

गुरु ध्यान –

आवाहन के बाद गुरुदेवा को अपने शरीर के षटचक्रों में स्थापित करें ।

चन्दन अक्षत

 निम्न नौ “सिद्धोध” का उच्चारण करते हुए गुरु के चरणों पर अक्षत समर्पित करें ।

नीराजन

इसके बाद ताम्र पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत एवं पुष्प लेकर गुरु चरणों में समर्पित करें –

तत्पश्चात् अपनें दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न “पंच पञ्चिका” उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें –

१ पंच लक्ष्म्यैः (१) श्री विद्या-लक्ष्म्यम्बा, (२) श्री एकाक्षर- लक्ष्म्यम्वा, (३) श्री महालक्ष्मी-लक्ष्म्यम्बा, (४) श्री त्रिशक्ति- लक्ष्मी-लक्ष्म्यम्बा, (५) श्री सर्वसाम्राज्य-लक्ष्मी-लक्ष्म्यम्बा ।

 २ पंच-कोश (१) श्री विद्या-कोशाम्बा, (२) श्री पर-ज्योतिः- कोशाम्बा, (३) श्रीपरि-निष्कल-शाम्भवी-कोशाम्बा, (४) श्री अजपा-कोशाम्बा, (५) श्री मातृका-कोशाम्बा ।

३ पंच कल्पलता (१) श्री विद्या-कल्पलताम्बा (२) श्रीत्वरिता- कल्पलताम्बा (३) श्रीपारि-जातेश्वरी कल्पलताम्बा (४) श्री त्रिपुटा-कल्पलताम्बा (५) श्रीपंचबागेश्वेरी-कल्पलताम्बा ।

४ पंच-कामदुघा (१) श्री विद्या-कामदुधाम्बा (२) श्री अमृतपीठेश्वरी-कामदु-धाम्वा (३) श्री सुधासू कामदुधाम्बा, (४) श्री अमृतेश्वरि-कामदुधाम्बा (५) श्री अन्नपूर्णा-कामदुधाम्बा ।

५ पंच-रत्नविद्या (१) श्री विद्या-रत्नाम्वा (२) श्री सिद्धलक्ष्मी- रत्नाम्बा (३) श्रीमातंगेश्वरी-रत्नाम्बा (४) श्री भुवनेश्वरी-रत्नाम्बा (५) श्री वाराही-रत्नाम्बा ।

श्री मन्मालिनी

 अंत में तीन वार श्रीमन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे कि गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाएं पूर्णता के साथ प्राप्त हो सके ।

अन्त में हाथ जोड़ कर गुरुदेव की प्रार्थना स्तुति करें

समर्पण

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