Vedic Sadhana

लक्ष्मी प्राप्ति का श्रेष्ठतम प्रयोग तो गुरु साधना के द्वारा ही संभव है। क्योंकि गुरु का ताप्तर्य केवल ज्ञान देने वाला नहीं है अपितु जीवन में पूर्णता प्रदान करने वाला है।

विश्वामित्र ने एक स्थान पर गोपनीय ढंग से स्वीकार किया है, कि गुरु अपने आप में समस्त ऐश्वर्य का अधिपति होता है, अतः गुरु साधना के द्वारा उस ऐश्वर्य को प्राप्त किया जा सकता है।

विश्वामित्र ने साधनाक्रम को समझाते हुए बताया है कि तीन प्रकार की साधनाएं होती है – १) अधम, (२) मध्यम तथा (३) उत्तम।

उत्तम साधना

उत्तम साधना या उत्तम उपासना वह कही जाती है, जिसमें अपने आपको गुरु के मन और प्राणों में विसर्जित कर देने की क्रिया होती है, साधना के प्रारम्भ में ही उसकी भावना यह होती है, कि मेरी स्थिती नगण्य है, वह अपने दिन भर के कार्य कलाप यह मान कर इस चिन्तन के साथ सम्पन्न करता है, कि यह कार्य गुरुदेव के लिए करना ही है, यह सब कुछ गुरुदेव का ही है, मैं तो इस पूरे कार्य या सम्पति का मात्र ट्रष्टी हूँ, और जो जिम्मेवारी या पारिवारिक कार्य मुझे सौप रखे है, मुझे इसलिए करने है, क्योंकि यह सब कुछ उनका है, और उनके लिए पूर्ण जिम्मेवारी के साथ यह कार्य करते रहना है, ऐसा ही विचार साधना और उपासना के लिए होना चाहिए और ऐसी साधना को ‘उत्तम साधना’ कहा जाता है।

साधनाक्रम

 विश्वामित्र ने एक अत्यन्त गोपनीय और दुर्लभ लक्ष्मी साधना क्रम स्पष्ट किया जिसके माध्यम से पूर्ण लक्ष्मी सिद्धहोती ही है, यह साधना केवल मात्र तीन घण्टे की है, जो कि दिपावली की रात्रि को किसी भी समय यह साधना सम्पन्न की जा सकती है, इसमें साधक शुद्धता के साथ स्नान करे श्वेत वस्त्र धारण कर, श्वेत आसन पर उत्तर की और मुंह कर बैठ जाय और अपने सामने गुरु चित्र को स्थापित कर दे, तत्पश्चात अपने शरीर को ही गुरू का शरीर मानात हुआ अपने आपको गुरु में लीन करता हुआ, अपने आज्ञाचक्र में अर्थात दोनों भौहों के बीच ‘परम तत्व गुरु’ स्थापना करें ।

ऐं ह्रीं श्रीं अमृताम्भोनिधये नमः । रत्न-द्विपाय नमः । सन्तान- वाटिकायै नमः । हरिचन्दन-वाटिकायै नमः । पारिजात वाटिकायै नमः। पुष्पराग-प्रकाराय नमः गोमेद रत्न-प्राकाराय नमः वज्र रत्न प्राकाराय नमः । मुक्ता रत्न प्राकाराय नमः । माणिक्य रत्न प्राकाराय नमः । सहस्त्र स्तम्भ प्राकारय नमः । आनन्द-वापिकायै नमः । बालातपोद्धाराय नमः। महाश्रृंगार-पारिखायै नमः। चिन्तामणि-गृहराजाय नमः । उत्तरद्वाराय नमः । पूर्व-द्वाराय नमः । दक्षिणद्वाराय नमः । पश्चिम द्वाराय नमः । नाना-वृक्ष-महोद्यानाय नमः । कल्प वृक्ष-वाटिकायै नमः। मन्दार वाटिकायै नमः । कदम्ब-वन वाटिकायै नमः। पद्मराग- रत्न प्राकाराय नमः । माणिक्य-मण्डपाय नमः । अमृत-वापिकायै नमः । विमर्श-वापिकायै नमः । चन्द्रिकोद्गद्वाराय नमः । महा-पद्माटव्यै नमः । पूर्वाम्नाय नमः । दक्षिणा-म्नाय नमः । पश्चिमाम्नाय नमः । उत्तराम्नाय नमः । उत्तर-द्वाराय नमः । महा-सिंहासनाय नमः। विष्णुमयैक-पंच- पादाय नमः । ईश्वर-मयैक पंच पादाय नमः । हंस-तूल-महोपधानाय नमः । महाविभानिकायै नमः । श्री परम तत्वाय गुरुभ्यो नमः। इस प्रकार परम तत्व गुरु को अपने आज्ञाचक्र में स्थापित करने के बाद गुरु की द्वादश कलाओं को पात्र में जल अक्षत, कुंकुम लेकर अर्घ्य दें “ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अं सूर्य मण्डलाय द्वादश- कलात्मने अर्घ्य-पात्राय नमः”। इसके बाद गुरु को पुनः उनकी प्रत्येक कला का पूजन इसी प्रकार अर्घ्य अक्षत, पुष्प आदि लेकर बारह बार जल समर्पित करें।

द्वादश कला पूजन

ऐं ह्रीं श्रीं कं भं तपिन्यै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं खं बं तापिन्यै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं गं फं धूम्रायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं घं पं विश्वायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं इं नं बोधिन्यै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं चं धं ज्वालिन्यै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं छं दं शोषिण्यै नमः । ऐं ह्री श्रीं जं थं वरण्योये नमः । ऐं ह्रीं श्रीं झं तं आकर्षिण्यै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं जं णं मायायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं टं ढं विवस्वत्यै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं ठं डं हेम-प्रभायै नमः ।

उपरोक्त कला पूजन में “ऐं ह्रीं श्रीं” लक्ष्मी के बीज मंत्र है और इस प्रकार लक्ष्मी के सभी स्वरूप अपने शरीर में समाहित हो जाते है ।

लक्ष्मी प्राप्ति के साथ सुख, सम्मान, संतोष, तुष्टि पुष्टि आदि भी प्राप्त होनी चाहिए तभी तो उस धन का महत्व हैं, तभी उस प्राप्त धन का सही उपयोग है तभी तो जीवन में पूर्ण आनन्द और ऐश्वर्य है, इसीलिए इन द्वादश कला पूजन के बाद पूर्ण ऐश्वार्य के लिये गुरु को अर्घ्य पात्र में जल, अक्षत, कुंकुम और पुष्प लेकर समर्पित करें। पहले मूल समर्पण करें फिर सोलह कलाओं में भी इसी प्रकार से अर्घ्य पात्र समार्पित करें । ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कलात्मने अर्घ्य पात्रामृतायनमः । इस अर्घ्य को समर्पित करते समय उसका जल थोड़ा थोड़ा करके सोलह बार ग्रहण करें, इसके बाद गुरु की सोलह कलाओं का अर्घ्य पूजन करें ।

सोलह कला पूजन

ऐं ह्रीं श्रीं अं अमृतायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं आं मानदायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं इं तुष्टयै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं ईं पुष्टयै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं उं प्रीत्यै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं ऊं रत्यै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं क्रं श्रियै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं श्रृं क्रियायै नमः । ऐं ह्री श्रीं लूं सुधायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं शृं रात्रयै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं एं ज्योत्स्नायै नमः। ऐं ह्रीं श्रीं ऐं हैमवत्यै नमः ऐं ह्रीं श्रीं ओं छायायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं औं पूर्णिमायै नमः । ऐं ह्रीं श्रीं अः विद्यायै नमः । ऐ ह्रीं श्रीं वः अमावस्यायै नमः ।

 वास्तव में ही यह एक अद्भुत और आश्चर्यजनक गुरु लक्ष्मी पूजन हैं जिससे कि पूर्ण समृद्धता और ऐश्वर्यता प्राप्त होती है।

बाद गुरु के मूल मंत्र का “ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः” मंत्र की एक माला फेरे और फिर अपने शरीर में ही गुरु को समाहित मान कर सामने किसी पात्र में दीपक लगा कर बैठे, बैठे ही समर्पण आमंत्रण समाहित आरती करें ।

पूर्ण सिद्ध आरती

अत्र सर्वानन्द -मये वेन्दव चक्रे- परब्रह्म- स्वरुपिणि परापर-

शक्ती -श्रीमहा -गुरु देव- समस्त- चक्र -नायके -सम्वित्ति -रूप – चक्र नायकाधिष्ठिते त्रैलोक्यमोहन

इसके बाद हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना सम्पन्न करें । श्रीनाथादि गुरु – त्रयं गण – पति पीठ त्रयं भैरवं सिद्धौध बटुक त्रयं पद युगं दूती क्रमं मण्डलम् वीरानष्ट चतुष्क षष्टि

इस प्रकार पूर्ण लक्ष्मी साधना केवल एक वार किसी भी रात्रि को या दीपावली की रात्रि को सम्पन्न करने से पूर्ण महालक्ष्मी सिद्धी प्राप्त होती हैं ।

“निखिलेश्वरानन्द स्तवन साधना”

      साधन :- १०८ बार निखिलेश्वरानंद स्तवन का पाठ ११ दिन करें।

साधना :- नित्य सुबह स्तवन का पाठ करें ।

 इस स्तोत्र से बड़ी कोई साधना नहीं है और इस स्तोत्र से बड़ा न तो कोई तत्व है और न ब्रह्म-ज्ञान, न तो कोई भक्ति है और न कोई चिन्तन, केवल मात्र इस स्तोत्र के पाठ करने से ही व्यक्ति अपनी मनोवांछित कामना पूर्ण कर लेता है ।।१०८।। जो नित्य प्रातःकाल उठ कर एक बार इस स्तोत्र का पाठ कर लेता है, उसका पूरा दिन और पूरी रात प्रफुल्लता, प्रसन्नता और सफलता से युक्त होती है ।। ११० ।। इस स्तोत्र में लक्ष्मी तत्व का समावेश है, अतः मात्र इसका पाठ करने से ही जन्म-जन्म की दरिद्रता समाप्त हो जाती है ।। १११ ।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *