Vedic Sadhana

गुरु बीज के प्रत्येक अक्षर का कुण्डलिनी के चक्रों पर जप करने से निश्चय ही कुण्डलिनी जाग्रत होती है, सहस्त्रार दल विकसित हो जाता है. और ऐसा साधक निश्चय ही सहस्त्रार-भेदन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेता है । इसमें प्रत्येक अक्षर के ९-९ लाख (कुल 81 लाख) जप करना चाहिए और फिर पूरे गुरु मंत्र का छः लाख जप करके पुरुञ्श्चरण सम्मन्न कर लेना चाहिए । गुरु मंत्र की सिद्धि से जीवन में समस्त ऐश्वर्य स्वतः प्राप्त हो जाते है ।

इसमें प्रत्येक वीज मंत्र के नौ -नौ लाख जप करने है. और यह जप सन्वन्धित चक्र पर ध्यान केन्द्रित करके करना है।

बीजाक्षरस्वरूप चक्र स्थान
चन्द्रमा के समान प्रकाशविशुद्ध चक्र
आज्ञा चक्र
अग्नि के समान रूपअनाहत चक्र
श्याम कान्तिअनाहत चक्र
त्वारक्त के समान अरुण आभास्वाधिष्ठान चक्र
नील कान्तिमणिपूर चक्र
नारायणायगोर कान्तिस्वाधिष्ठान चक्र
गुरुभ्योकृष्ण समान कान्तिमूलाधर चक्र
नमःधूम्र समान कान्तिअनाहत चक्र

इस प्रकार षटचक्र के दलों पर गुरु मंत्र के बीजाक्षरों का ध्यान करते हुए. गुरु द्वारा प्रदत्त माला पर प्रत्येक बीजाक्षर का ९ लाख करना चाहिए, साथ ही नित्य निम्न विनियोग करें ।

विनियोग- ॐ अस्य गुरु मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरा ऋषयः गायत्री उष्णिक्-अनुष्टुप छन्दांसि, महाकाली महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताः, ब्रह्म शाकम्भरी भीमा शक्तयः ब्रह्माण्ड बीजानि, ॐ कीलकं अग्नि वायु सूर्याः तत्वानि “अमुक” कार्य सिद्धयर्थे मंत्र जपे विनियोगः।

ऋचादि न्यास – इस न्यास को करने से सारा शरीर दिव्य और चैतन्य हो जाता है।

वर्ण मातृका न्यास –इससे गुरु, ब्रह्म स्वरूप वन कर साधक के शरीर में समाहित हो जाते है।

सारस्वत न्यास – इसके करने से शरीर के जड़ता, आलस्य और पाप नष्ट हो जाते है।

 इसमें गुरु मंत्र का जप निम्न स्थानों पर दाहिने हाथ की उंगलियां रखते हुए करें ।

कनिष्ठिका – ६ बार, अनामिका ६ बार, मध्यमा ३ बार, तर्जनी ४ बार, अंगुष्ठ ६ बार, करतलकरपृष्ठ ६ बार, पृष्ठभाग ११ बार, मणिबन्ध ८ बार, हस्त ९ बार, हृदय १०. बार, सिर – ११ बार, शिखा १२ बार, दोनों कवच – ६ बार, दोनों नेत्र ६ बार, सर्वांग १५ बार

 मातृका न्यास – यह न्यास करने से साधक त्रिकालज्ञ, एवं त्रैलोक्य विजयी हो जाता है।

 ॐ गुरुभ्यो ब्राह्मी पूर्वतो मां पातु । ॐ गुरुभ्यो माहेश्वरी आग्नेय मां पातु । ॐ गुरुभ्यो कौमारी दक्षिणे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो वैष्णवी नैऋते मां पातु । ॐ गुरुभ्यो वाराही पश्चिामे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो इन्द्राणी वायव्ये मां पातु । ॐ गुरुभ्यो चामुण्डे उत्तरे मां पातु । ॐ गुरुभ्यो महालक्ष्मी ऐशान्ये मां पातु । ॐ गुरुभ्यो व्योमेश्वरी ऊर्ध्व मां पातु । ॐ गुरुभ्यो सप्त-द्वीपेश्वरी भूमौ मां पातु । ॐ गुरुभ्यो कामेश्वरी पाताले मां पातु ।

 ब्रह्म न्यास –इस न्यास से साधक चिरयौवन मय बना रह कर सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करता है।

ॐ सर्व सिद्धि प्रदायै नमः मस्तकादि चरणान्तं मां पातु । ॐ शिष्य प्रियायै नमः पादादि मस्तकान्तं मां पातु ।

शून्य न्यास- इस न्यास को करने से साधक की मन की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

देवी न्यास – इस न्यास को करने से साधक को सिद्धाश्रम प्राप्ति होती है ।

वर्ण न्यास – इस न्यास से जीवन के सभी रोग समाप्त हो जाते है। ॐ परम नमः ब्रह्मरन्ध्र ॐ तत्वाय नमः दक्ष नेत्रे ॐ नारायणाय नमः वाम नेत्रे ॐ गुरुभ्यो नमः दक्ष-वाम कर्णे ॐ नमः मुखे ॐ ॐ नमः सर्वागे ।

विन्ध्य न्यास – इस न्यास से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते है। ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ।

पैरों से लगाकर सिर तक और सिर से लगाकर पैरों तक ९- ९ वार यह मंत्र उच्चारण करते हुए स्पर्श करें ।

व्यापक न्यास – इस न्यास से समस्त देवताओं का सान्निध्य प्राप्त होता है।

१ – गुरु मंत्र को मस्तक से पैरों तक उच्चारण करते हुए आठ बार जपे ।

२-ॐ परम-पैरों से मस्तक तक आठ बार जपे ।

३-ॐ तत्वाय-सामने के भाग पर स्पर्श करते हुए आठ बार मंत्र जपे ।

४ – ॐ नारायणाय – उच्चारण करते हुए सिर पर स्पर्श करते हुए आठ बार मंत्र जपे ।

५ -ॐ गुरुभ्यो-उच्चारण करते हुए पीछे के भाग पर आठ बार मंत्र जपे ।

६-ॐ नमः मंत्र उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर आठ बार मंत्र उच्चारण करें ।

 षडंग न्यास –इस न्यास को करने से त्रैलोक्य, साधक के वश में हो जाता है।

 इसके बाद “नारायण” बीज को गौरवर्ण का ध्यान करते हुए गुरु स्तोत्र का पाठ करें।

इसके बाद “गुरुभ्यो” वीज का शुक्ल वर्ण का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक का उच्चारण करें । द्विदल कमलमध्ये बद्धसंवित्समुद्रं धृतशिवमयगात्रं साधकानुग्रहार्थम् । श्रुतिशिरसिविभान्तं वोधमार्तण्डमूर्ति शमिततिमिरशोक श्रीगुरु भावयामि ।। हृदंबुजे-कर्णिकमध्यसंस्थं सिंहासने संस्थितदिव्यमूर्तिम्। ध्यायेद्गुरु चन्द्रशिलाप्रकाशं चित्पुस्तकाभीष्टवरंदधानम् ।।

इसके बाद “नमः” बीज मंत्र का उच्चारण करते हुए निम्न पाठ करें । ब्रह्मानन्दं परम-सुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति द्वन्द्वातीतं गगन-सदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरु तं नमामि ।।

इसके बाद मूल षडंग न्यास करें ।

बीजकर-न्यासअंग न्यास
ॐ परमअंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः
ॐ तत्वायतर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा
ॐ नारायणायमध्यमाध्यां नमःशिखायै वषट्
ॐ गुरुभ्योअनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुम्
ॐ नमःकनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र त्रयाय वौषट् अस्त्राय फट् ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमःकरतल – करपृष्ठाभ्यां नमः

व्यापक न्यास

दिक् न्यास

 इसके बाद मानस पूजन करें । जप समर्पण मंत्र द्वारा जप समर्पण करें ।

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